समझ आ जाये कभी
क्या कहूं तुमसे, तुम्हे तो कुछ सुनना ही नहीं है
एक तुम ही तो हो, जिससे मैं कुछ कहता हूं
जब कहूँ कुछ तुमसे तुम्हे कुछ अच्छा, लगता ही नही है
और जब चुप बैठूं मैं तो कहती हो,
मैं चुप क्यों हूं, मैं उन सा क्यों नही, मैं उनको देख कुछ सीखता क्यों नही
हां नहीं मैं उनसा, उन जैसा कुछ करता नही
पर ऐसा तो नही के तुम पर मेरा ध्यान
और प्यार ही नही।
हां बाते मेरी सभी से थोड़ी अलग ही रही
प्रेम करने की विधि भी अन्य सी नही
तुम प्रयास तो करो, इस दिशा से देखो
तुम मेरी खिड़की से ना देखो ना ही सही
मेरे ओर तनिक तो आओ,
इस प्रकार देखो या इस कोण से देखो
क्या पता...
तुम्हे मेरी बातें मेरा प्यार समझ आये कभी।
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